स्त्री
स्त्री ,
जे धुरी होइत छथि
प्रत्येक घर के
जिनकर चारु कात
सुख-दुःख घुमैत रहैत
छनि .
जिनकर जगनाई
जेना निष्प्राण शरीर
में
श्वास केर प्रवेश
भेनाई .
जेना,
भेट गेल हुए सब के
अपन अपन आजुक
उद्देश्य.
जखन धरि घर में छथि
घर, घर रहैए.
आ,
जखन अपन कार्यस्थली
कतौ बाहर भ जाइन,
त ओतहुका रौनक
बनि जाइत छथि.
स्त्री कखनो सीता
छथि
त, कखनो राधिक.
कखनो साक्षात् शक्ति
त कखनो माँ शारदा
हर रूप में जगत केर
जीवनी बनि
अपन नेह सं सिंचित
करैत छथि
अमूल्य मातृत्व
निछावर करैत
सम्पूर्ण परिस्थिति
केर
करेज में साईट
जखन ओ शक्ति रूपेण
संग होइत छथि
तखन कोनों झंझावातक
स्पर्शो मात्र संभव
नहिं.
लेखनी : कंचन झा
@सर्वाधिकार
सुरक्षित
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