क्यूं चाहिए सोने
चांदी
अपना ओज बढ़ाने को
मत ढांको तुम अपनी
उर्जा
उसे छटा बिखरने दो
निज प्रकाश से अपना
मुखडा
सूरज सा दमकेगा साथी
नहीं चमकना शशि की भांति
भाड़े की रौनक ले
लेकर.
आओ खुद में खुद को ढूँढें
जो प्रकाश अंदर
बिखरा है
ढांक रखा चादर से
जिसको
उस आभा को छितराने
दो
नहीं चाहिए सोने
चांदी
अपना ओज बढ़ाने को
मत ढांको तुम अपनी
उर्जा
उसे छटा बिखराने दो
लेखनी : कंचन झा
@सर्वाधिकार
सुरक्षित
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