Monday 26 September 2011

साँझ-रात

ढलता साँझ .
दिन को अपने मैले आँचल में
समेटता बादल .......
दिन भर की थकान ..
संग में चुग्गा -दाना.
बच्चे का भोजन लेकर
घर की ओर
उड़ान भरता जोड़ा .
अँधेरे की लहराती साड़ी..
आँचल में जड़े हैं सितारे .
फिर बीता कुछ समय.
निखर कर आँचल से झाँका
चंदा का ...
वह चंदा सा मुखड़ा.
अहा !
बीत जायेगी रात यूँही
इस मुखड़े को तकते -तकते
अँधेरे की यह चादर
सच,
छोटी है इस
नयन तृप्ति के आगे .

माँ

माँ
तू सरिता है करुणा दया की
तू आकाश है स्नेह की

गंगा जमुना सा पावन मन लिए
तू समंदर है ममता की

थके क़दमों का सहारा है तू
मेरी बहती जिंदगी का किनारा है तू

गम के थपेड़ों में
बहकते  क़दमों को सम्हालने वाली
मजबूत आँचल का किनारा है तू

आवारा बादल सा घूमता
थिरकता, नाचता, झूमता
निर्बाध  "ख " सा मन मेरा

इस बेलगाम मन की
खूबसूरत सी लगाम है तू

माँ सुंदरता की अनुपम
मिसाल है तू  

Monday 12 September 2011

ई की.... (क्लोमिंग रिसर्च क परिपेक्ष में विज्ञान), प्रकाशित "आँकुर" अप्रिल-सितम्बर२००७

विज्ञानक महिमा केर
पाबि क आशीष
बीज आई
अपने मूलक
गुलाम नहिं.

आशीष रहत जखन धरि
नव नव आविष्कारक
कियो नेन्ना किये पुनि
मै केर सम्मान करत
बाप केर  आदर देत
जनकक आभार मानत

आई सौंसे भेट रहल अछि
किराया केर जमीन
विज्ञानक छत्रछाया रहत तं
कतहु भेट जैत जीवन

स्वाइते
संस्कारगत आदर्शक
क्षीणता क
मार्ग बनि गेल
विज्ञान


Sunday 11 September 2011

नारी (मैथिली पत्रिका "कर्णामृत " अप्रैल -जून २०११ में प्रकाशित )

नारी शक्ति छथि
नारी ममता छथि
निष्प्राण शारीर केर
आत्मा  छथि

हम छी ,अहाँ छी
आई जगत में
से संभव केनिहार
नरिए छथि

नारी अथाह समुद्र छथि
तं
गगनहि जेकाँ
विशालो छथि

जं पुष्प सन कोमल
छथि  तं
पर्वत सन कठोर
आ साहसी सेहो छथि

प्रेम केर
अनंतता सं
करेज में समेटनिहार
नारी छथि

महिषासुर सन
असुर केर
संहार केनिहरि
सेहो नारी छथि

नारी सं
संसार अछि
नरिए सं
आकार अछि

अंक लगेनिहारि
नेह केनिहारि
कान पकरि क
नीक बेजाए सिखौनिहरि

सम्पूर्ण जीवन
पुरुषक अधीनता क वावजूद
पुरुष उत्पन्न क
नेहाल भेनिहारि नारी छथि

कतेको बंधन में सदैब
स्वछंद रहली
कतेको कष्ट में सदैव
हँसैत रहली

जिनका
कतेको उपमा में
बान्हल गेल
मुदा बेर-बेर
सदैब
अनुपमेय रहली
सैह नारी छथि. 

Friday 9 September 2011

सारा जहां हमारा हो ...

धरती से अम्बर तक फैला
 हो अपना घर बार
देख देख कर इतराएं हम
मुस्काएं हर बार .

हो खुशियाँ इतनी ऊँची की
नजर जहां तक पहुँच न पाए
दिल में हों अरमान भरे
और हर इक चाहत  मंजिल पाए.

नई सुबह की नई ठिठोली
खिली धुप भी हमें हँसाए
हमको हँसते देखे दुनियाँ
वो भी संग संग मुस्काए.

चाहत है सपनों में, सच में
बस इतनी ही बातें हों
दिन हो अपना, बस दिन ही क्यों
अपनी सारी रातें हों.

असां कुछ भी नहीं

इतना आसां नहीं होता
     बिपरीतताओं  के बीच,
     तूफानों के थापेडो में भी,
     साहस का दामन थामे रखना.


इतना असां नहीं होता
     अनजाने में अपने को खोकर ,
     बस संतोष रखकर ,
     भीड में अनजान हो जाना.

इतना असां नहीं होता
      दामन की खुशियों को  ,
      खोकर भी ,
      चेहरे की शिकन को छिपाना.

इतना असां नहीं होता
      शब्दों में पिरोकर ,
      भावनाओं का गुलिस्ता,
      किसी अपने को पहुंचना.

बादल और मैं

 ऐ बादल उड़ते रहना

खिलते रहना तू भी

मुझसा ही

जीवन का सत्य समझ

चलते रहने को

मुड जाएगा कर्म तेरा 

जो रुख होगा

 बहती बयार का.

मैं और तू 

रास्ते अलग

पर धुरी एक है 

वही चक्र तेरा मेरा भी 

अंतर है बस ,

 चलने भर का .