Monday 26 September 2011

साँझ-रात

ढलता साँझ .
दिन को अपने मैले आँचल में
समेटता बादल .......
दिन भर की थकान ..
संग में चुग्गा -दाना.
बच्चे का भोजन लेकर
घर की ओर
उड़ान भरता जोड़ा .
अँधेरे की लहराती साड़ी..
आँचल में जड़े हैं सितारे .
फिर बीता कुछ समय.
निखर कर आँचल से झाँका
चंदा का ...
वह चंदा सा मुखड़ा.
अहा !
बीत जायेगी रात यूँही
इस मुखड़े को तकते -तकते
अँधेरे की यह चादर
सच,
छोटी है इस
नयन तृप्ति के आगे .

2 comments:

  1. एक दृश्य को 'स्टिल' कर दिया है आपने एक बेहद पोएटिक 'क्लिक' के साथ.

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