Saturday 1 October 2011

आबैत रहब स्वप्न .........

स्वप्निल एही आँखिक संगी
हे सपना एहिना सजैत  रहब
वर्तमान हो चाहे किछु औ
एहिना कल्पित खुशियाँ बनि-बनि
संग संग हमरे रहब
जगमगाए एहिना तन औ मन
किछु एहेन करिते रहब
स्याह रात्रि में रौशनी बनि बनि
स्वप्न दीप जरिते रहब
बनि जैब तखने उदय जखन
आशा केर सूरज उतरैत होथि
सजि जैब एहिना जेन कि
चहुँओर कचनार कियो बिखेरने होथि
हर आश हमर अहिं सं पुरत
जीवन ठीक ई पाथर के डगर
थकि क पुनि हम संभलव तखने
यदि अपने नयन में सजल रहब . 

No comments:

Post a Comment