Saturday 1 October 2011

वो बचपन का मीत ...


नभ में खिलता चाँद मुझे ही
देख देख मुस्काता है
बचपन कि यारी है हमारी
रोज शाम को आता है.

कितनी खुशियाँ मिल जाती हैं
चंदा कि किरणों से मुझको
तन मन कि हर इक थकान से
मिलती कितनी राहत मुझको

मैं उसको ही देखा करती
वो मुझको ही तकता है
बचपन कि यारी है हमारी
रोज शाम को आता है.

करता है मुझसे ही ठिठोली
कभी कभी छिप जाता है
उस से भी तो रहा न जाता
फिर नभ में आ जाता है

ऐ मेरे बचपन के साथी
ऐ छुटपन के मीत मेरे
साथ साथ ही चलते रहना
यूँ ही हर पल संग मेरे

मेरी राहें रौशन  करना
यूँ ही अंधियारी रातों में
और फिर मुझको ढूंढा करना
यूँ ही जीवन की  राहों में .

10 comments:

  1. kanchan ji blog par aakar utsah vardhan ke liye bahut bahut dhnyvaad,

    sundar rachna padvane ke liye bahut bahut aabhar

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  2. नभ में खिलता चाँद मुझे ही
    देख देख मुस्काता है
    बचपन कि यारी है हमारी
    रोज शाम को आता है.


    बहुत ही प्यारी...सुन्दर रचना....

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  3. मेरी राहें रौशन करना
    यूँ ही अंधियारी रातों में
    और फिर मुझको ढूंढा करना
    यूँ ही जीवन की राहों में .

    Bahut hi Sunder Panktiyan hain....

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  4. मेरी कोशिश को पसंद करने के लिए आप सब का आभार.

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