Thursday 6 October 2011

-लौ की दृढ़ता-

टिम टिम टिम टिम लौ दिए की,
हिलती डुलती जलती जाती.
चाहे तली अँधेरी कितनी,
पर फिर भी वो मुस्काती है,
टिम टिम कर जलती जाती है.

चाहे जग सुन्दर हो कितना,
पर अँधेरा छाया हो ये,
दीपक नहीं देख पाता है.

कितना ही कम तेल भले हो,
और चाहे हो छोटी बाती,
पर जब तक ताकत जीने की,
रौशनी अपनी बिखराता है.
टिम टिम कर जलता जाता है.

हवा के झोंके भले डराएँ,
लौ पर फूंके , मुँह चिढायें,
पर अपनी ताकत से दम भर,
हिलती डुलती मुस्काती है,
दिए की लौ जलती जाती है.

चाहे दुनियाँ परे खड़ी हो,
पर सुख बिखराने की खातिर,
लड़ जाओ तुम हर ताकत से,
दीप यही तो सिखलाता है.
टिम टिम कर जलता जाता है .

6 comments:

  1. हवा के झोंके भले डराएँ,
    लौ पर फूंके , मुँह चिढायें,
    पर अपनी ताकत से दम भर,
    हिलती डुलती मुस्काती है,
    दिए की लौ जलती जाती है.
    sarthak sandesh deti hui rachna abhar

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  2. दीप यही तो सिखलाता है.
    टिम टिम कर जलता जाता है .

    bahut sundar rachna

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  3. दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
    आपको ढेरों शुभकामनाएं,

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  4. Ye panktiya bahut achhi lagi:
    हवा के झोंके भले डराएँ,
    लौ पर फूंके , मुँह चिढायें,
    पर अपनी ताकत से दम भर,
    हिलती डुलती मुस्काती है,
    दिए की लौ जलती जाती है

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  5. Dhanyawaad aap sab ka...mere blog par aane k kiye aur utsahit karne ke liye...

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  6. बेहतरीन रचना

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