Thursday 24 January 2019

मनक पंछी उड़ाबी

कोना उड़त मन केर पंछी ,
जखन बान्हि के राखब ओकर पंख .
पहिरा क भारी भारी गिरमलहार
दाबि देब ओकर सम्पूर्ण शक्ति के.
कोना उड़त मन केर पंछी .


बहुत पैघ अछि आकाश .
एइछे त की ,
जं ओकर अनन्तता केर
बुझ केर कोशिश नै करि


बहुत किछ क सकैत छी
अबला रहितो ...हमहुं सब
जं अपन दायरा सं कनी बेसी सोची.
उड़ दी अपन मनक पंछी .

उड़त त बढ़त , बढ़त त किछु बनत .
मुदा ताहि लेल सबल आत्मविश्वास संगे
बहुत रास हिम्मत चाही.

आऊ आब करी हिम्मत
आ उड़ दी अपन मनक पंछी .

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