अनहद ई जाड़
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हाड़- हाड़ कंपा देल
एहि बेर जाड़ भेल।
जाड़क प्रचंडता में
जान -माल काँपि गेल।
दू टा किछु देबै जखन
जठराग्नि पोषित हो।
ओहि अग्नि सौंसे ई
हाड़- मांस ताप सेकत।
चलु चलु उठू आब
जुनि करू आसकैत।
उठबै त काज हेतै
तापक ओरियान हेतै।
सुरुजक उग्रास हेतैन
कुहेसक घेरा स।
उठि जेता जखने ओ
जन जन के प्राण भेटत।
लेखनी: कंचन झा
फोटो: गूगल सँ साभार
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