धरती से अम्बर तक फैला
हो अपना घर बार
देख देख कर इतराएं हम
मुस्काएं हर बार .
हो खुशियाँ इतनी ऊँची की
नजर जहां तक पहुँच न पाए
दिल में हों अरमान भरे
और हर इक चाहत मंजिल पाए.
नई सुबह की नई ठिठोली
खिली धुप भी हमें हँसाए
हमको हँसते देखे दुनियाँ
वो भी संग संग मुस्काए.
चाहत है सपनों में, सच में
बस इतनी ही बातें हों
दिन हो अपना, बस दिन ही क्यों
अपनी सारी रातें हों.
हो अपना घर बार
देख देख कर इतराएं हम
मुस्काएं हर बार .
हो खुशियाँ इतनी ऊँची की
नजर जहां तक पहुँच न पाए
दिल में हों अरमान भरे
और हर इक चाहत मंजिल पाए.
नई सुबह की नई ठिठोली
खिली धुप भी हमें हँसाए
हमको हँसते देखे दुनियाँ
वो भी संग संग मुस्काए.
चाहत है सपनों में, सच में
बस इतनी ही बातें हों
दिन हो अपना, बस दिन ही क्यों
अपनी सारी रातें हों.
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