Tuesday, 20 September 2016

बदल दो....,,तस्वीर.

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यूँ अश्रुगीत कब तक बहेंगे.
हम कर्महीन कब तक सहेंगे.
आत्मा पर कब तक अपने,
हिमालय कोई डाले रखेंगे.
कर रही चीत्कार मानवता आज,
सुनो देश के वीर............
बदल दो भारत की तस्वीर.
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अँधेरी गलियों में अब तो..
जुगनू भी डर जाता है.
इंसानों की बात ही क्या,
हर जर्रा , डर थर्राता है.
क्योँ जला दी हमने अपनी,
खुशियों की जागीर....
बदल दो.. भारत की तस्वीर.
.....
चाहे अपना हो या पराया,
दुश्मन सदा विनाशक होता.
मानवता का खून बहा दे..
ऐसा कोई सगा न होता.
चलो दिखा दें उनको उनकी,
जैसी हो तस्वीर .
बदल दो भारत की तकदीर.

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Thursday, 6 March 2014

मेरा कोई अपना


दिल के करीब....कोई हलचल सा 
फिरता है हरपल
एक सपने सा 
मेरा कोई अपना.

मोहनी मूरत लिए..
फूलों सा कोमल
प्रेम की परिभाषा
मेरा कोई अपना.

आहट ही देती है सुकून 
अंतरात्मा पोषित
होती हो जैसे
क्या कहें कैसा 
पर मेरा कोई अपना.

तन को , मन को 
उपस्थिति का एहसास है
पुकारता है मुझे..
न जाने कौन सा संबोधन 
पर दिल को छूती है आहट उसकी

हाँ है वो मेरा कोई अपना. 

आँखिक मोती ..


आँखिक किछु बिखरल मोती 
राखि लैत छी सँजो क..
खुशी केर सीप में ..
फेर कखनहुँ
छोडि दैत छी हिनका उन्मुक्त
भावना केर समुद्र में
देखैत छी,
अचानक 
चाहैत अछि हावी होब 
दुख केर  चट्टान 
हमर एहि मोती पर .
लागैत अछि कोनों भँवर सन ...
की हैत अंत ,
एहि चिर संघर्षक. 
आ फेर 
जीत जैत अछि हमरे मोती.

Sunday, 27 November 2011

मिली भाव को अभिव्यक्ति ...

बस सो़चते गए और
हर हाल बयां हो गया....
छोटी सी इस कलम से
अहसास बयां हो गया....
अब तक दफ़न था दिल में
दिल की  ही बात मेरी ,
ये नोंक फिसलती गई ...
और शब्द में ढलती गई ...
होंठों से जो भी शब्द ,
नहीं जन्म ले सके कभी
उनको नया जनम मिला ..
मेरी भावना को अभिव्यक्ति मिली...

बचपन की यादें .......

जाने क्योँ
फिर-फिर आती हैं 
मीठी यादें बचपन की .....
जिसे छो़ड़  मैं 
आगे बढ़ गई...
बस यादें हैं 
बचपन की .....
खुले कंठ से 
हँसी-ठिठोली,
खेल खिलौने 
बचपन की .......
वो सच्चापन ,
वो निर्दोशमिजाज़,
मेरे उस बचपन की...
जाने कब मैं,
आगे बढ़ गई.....
बस यादें हैं
बचपन की.....
ना बीते का संशय था,
ना चिंता थी आगे की.... 
वर्तमान को 
जीती थी में ,
खुशियाँ कितनी
बचपन की......
अम्मा कि गोदी में
जाने कब थक कर
सो जाती थी,
और कब अपनी ही
सपनीली सपनों में 
खो जाती थी.....
बड़े अनोखे
सपनों जैसा ,
जीवन अपना 
चलता था
फिर जाने कब 
आगे बढ़ गई,
बस यादें हैं
बचपन की.....
बचपन छूटा,
सपना टूटा...
यादें ही अब 
बांकी हैं,
जाने क्यूं
अब भी आती हैं,
मीठी यादें
बचपन की.....

Thursday, 24 November 2011

अश्रु दोषी नहिं ...

अश्रु केर दोष कोन
छलकि-छलकि जायत छैथ....

भावनाक उन्मादे
बहकि-बहकि जैत छैथ ....

कमल पो़र नयनों केर
मोन पडे जे अतीत
सुखक-दुखक छेड़छाड़
ढलकि ढलकि जैत छैथ....

अश्रु केर दोष कोन
ढलकि ढलकि जैत छैथ ....

हृदय सखे मथनी ओ
जाहि बीच कयल कर्म
नीक -बेजै नापि-तोलि
माथि क बहराइत छैथ

ताहि बीच नयन नीर
बहकि -बहकि जैत छैथ  .....

अश्रु केर दोष कोन
छलकि -छलकि जैत छैथ ....

Thursday, 6 October 2011

-लौ की दृढ़ता-

टिम टिम टिम टिम लौ दिए की,
हिलती डुलती जलती जाती.
चाहे तली अँधेरी कितनी,
पर फिर भी वो मुस्काती है,
टिम टिम कर जलती जाती है.

चाहे जग सुन्दर हो कितना,
पर अँधेरा छाया हो ये,
दीपक नहीं देख पाता है.

कितना ही कम तेल भले हो,
और चाहे हो छोटी बाती,
पर जब तक ताकत जीने की,
रौशनी अपनी बिखराता है.
टिम टिम कर जलता जाता है.

हवा के झोंके भले डराएँ,
लौ पर फूंके , मुँह चिढायें,
पर अपनी ताकत से दम भर,
हिलती डुलती मुस्काती है,
दिए की लौ जलती जाती है.

चाहे दुनियाँ परे खड़ी हो,
पर सुख बिखराने की खातिर,
लड़ जाओ तुम हर ताकत से,
दीप यही तो सिखलाता है.
टिम टिम कर जलता जाता है .