जाने क्योँ
फिर-फिर आती हैं
मीठी यादें बचपन की .....
जिसे छो़ड़ मैं
आगे बढ़ गई...
बस यादें हैं
बचपन की .....
खुले कंठ से
हँसी-ठिठोली,
खेल खिलौने
बचपन की .......
वो सच्चापन ,
वो निर्दोशमिजाज़,
मेरे उस बचपन की...
जाने कब मैं,
आगे बढ़ गई.....
बस यादें हैं
बचपन की.....
ना बीते का संशय था,
ना चिंता थी आगे की....
वर्तमान को
जीती थी में ,
खुशियाँ कितनी
बचपन की......
अम्मा कि गोदी में
जाने कब थक कर
सो जाती थी,
और कब अपनी ही
सपनीली सपनों में
खो जाती थी.....
बड़े अनोखे
सपनों जैसा ,
जीवन अपना
चलता था
फिर जाने कब
आगे बढ़ गई,
बस यादें हैं
बचपन की.....
बचपन छूटा,
सपना टूटा...
यादें ही अब
बांकी हैं,
जाने क्यूं
अब भी आती हैं,
मीठी यादें
बचपन की.....
Dhanyawaad dinesh ji...utsaahwardhan ke liye...
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