नभ में खिलता चाँद मुझे ही
देख देख मुस्काता है
बचपन कि यारी है हमारी
रोज शाम को आता है.
कितनी खुशियाँ मिल जाती हैं
चंदा कि किरणों से मुझको
तन मन कि हर इक थकान से
मिलती कितनी राहत मुझको
मैं उसको ही देखा करती
वो मुझको ही तकता है
बचपन कि यारी है हमारी
रोज शाम को आता है.
करता है मुझसे ही ठिठोली
कभी कभी छिप जाता है
उस से भी तो रहा न जाता
फिर नभ में आ जाता है
ऐ मेरे बचपन के साथी
ऐ छुटपन के मीत मेरे
साथ साथ ही चलते रहना
यूँ ही हर पल संग मेरे
मेरी राहें रौशन करना
यूँ ही अंधियारी रातों में
और फिर मुझको ढूंढा करना
यूँ ही जीवन की राहों में .
kanchan ji blog par aakar utsah vardhan ke liye bahut bahut dhnyvaad,
ReplyDeletesundar rachna padvane ke liye bahut bahut aabhar
नभ में खिलता चाँद मुझे ही
ReplyDeleteदेख देख मुस्काता है
बचपन कि यारी है हमारी
रोज शाम को आता है.
बहुत ही प्यारी...सुन्दर रचना....
मेरी राहें रौशन करना
ReplyDeleteयूँ ही अंधियारी रातों में
और फिर मुझको ढूंढा करना
यूँ ही जीवन की राहों में .
Bahut hi Sunder Panktiyan hain....
मेरी कोशिश को पसंद करने के लिए आप सब का आभार.
ReplyDeleteबहुत नीक ।
ReplyDeletebahut nik rachna...
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteati sunder kanchan ji .
ReplyDeleteNice mami
ReplyDeleteThank u sumit
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